History/City Profile
संगमरमर ही नहीं स्वामीभक्ति और स्वाभिमान से भी ओत-प्रोत है आमेट
अरावली पर्वत श्रंृखला की हरिम, सुरम्य वादियों की उपत्यकां से लगकर, पावन सरिता चन्द्रभागा के तट पर अवस्थित, स्वाभिमानी, स्वामिभक्ति, विरोचित कृत्यों से ओत-पोत, मेवाड़ रियासत का भू-भाग, रण बांकुरे वीरवर पत्ता की जागीर स्थली, आमेट संगमरमर, रेडीमेड गारमेंट्स एवं कपड़ा मंडी के रूप में विख्यात है।
तेरह सौ वर्ष पूर्व ब्राह्मण अम्बाजी पालीवाल ने प्रकृति प्रकोप से ग्रस्त पाटन नगरी से पूर्व दिशा में प्रस्थान कर, सघन आम्रकुंज वृक्षों से आच्छादित, जंगली समतल भू-भाग को आवास स्थल बनाया, जिसकों पूर्व में अम्बापुरी बाद में इसी का अपभ्रंश आमेट (आम्बेट) इस नगर की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हैं।
यह नगर पूर्वाद्ध में ब्राह्मणों एवं राठौड़ वंशीय शासकों के अधिनस्थ रहा। क्षत्रियकाल के उत्तरार्ध में यहां पर चूण्डावतों का आधिपत्य रहा. सोलहवीं शताब्दी में मेवाड़ रियासत के उदयपुर संभाग महाराणा प्रताप के सोलह उमरावों में से आमेट ठिकाने के रावसाहब एक उमराव थे, जिन्हे रावल कहा जाता था। इनको गौत्र चूण्डावत थी. इनके वंशजों में जग्गा एवं पत्ता जैसे अनूठे वीर योद्धा हुए जिनकी शौर्य एवं बलिदानी गौरवपूर्ण गाथाएं इतिहास के पन्नों में स्र्वणाक्षरों से अंकित है।
राजस्थान राज्य के राजसमंद जिले का अनुमानत पच्चीस हजार आबादी वाला यह क्षेत्र कर्क रेखा के उत्तर में 220 किलोमीटर दूर 73.5 डिग्री पूर्वी देशांतर एवं 25 डिग्री उत्तरी अंक्षाश पर बसा हुआ है। रियासत काल में सुरक्षा की दृष्टि से नगर के चारों और परकोटा था, जिसमें प्रवेश के लिए चार प्रमुख द्वार थे।उनमें से इनके नाम प्रमुख 1) नदी-दरवाजा, 2) आगरिया-दरवाजा, 3) वराही-दरवाजा, 4) मारु-दरवाजा हैं. इनमें वराहीं दरवाजा आजमी देखा जा सकता है. जो पूर्व के रियासत काल का स्मरण करवाता है.
आमेट नगर राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 8 के समीपस्थ होकर, दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, मुंबई जैसे प्रमुख महानगरों से सीधे सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है. पूर्व में श्रद्धालु रेल यात्रियों के भगवान श्री चारभुजाजी को जाने वाले मार्ग की दिशा तर्ज पर आमेट के रेलवे स्टेशन का नाम चारभुजा रोड रखा गया, जो उदयपुर मारवाड़ जंक्शन रेलवे मार्ग पर स्थित है. इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 536.59 मीटर है. इसके चारों ओर अरावली पर्वत श्रंृखलाएं फैली हुई है. जिनकी अनियमति ऊंचाई के कारण यहां पर पानी का स्तर गहरा तो कहीं कम गहरा मिलता है. पर्वत श्रंृखला की श्रेणियां नगर के समानान्तर स्थित होने से अरबसागरीय मानसूनी वर्षा का लाभ आमेट को कम मिलता है, किन्तु बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून का लाभ नगर के आधे भाग में अर्थात पर्वतीय क्षेत्र में अच्छी वर्षा के रूप में मिलता है.
विक्रम संवत 1513 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को राजा जयसिंह राठौड़ ने भगवान चारभुजानाथ की पूजा अर्चना एवं प्राण-प्रतिष्ठा पालीवाल ब्राह्मणों से करवाई। इनकी अनूठी भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर भगवान श्री चारभुजानाथ चमत्कारित रूप में आमेट की धरा पर अवतरित हुए जो आज भी रामचौक में बिराजित भगवान श्री जयसिंह श्याम जन-मन की अटूट आस्था व श्रध्दा भक्ति के केन्द्र बने हुए हैं। सामन्तशाही परम्परा के शिवनाथ सिंह के शासनकाल में नगर ने साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में विशेष उन्नति की। भगवान जयसिंह श्याम मंदिर के पास ही भगवान पाश्र्वनाथ का मंदिर है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के आघप्रवर्तक आचार्य भिक्षु केलवा की अन्धेरी ओरी से आमेट आये उनकी स्मृत्ति में यहां आज भी भिक्षुजी का ओटा है। बड़ा मंदिर, माईराम-आश्रम, संत श्री आसाराम बापू आश्रम, वेवर-महादेव, गुलाबशाह बाबा, शिवनाल, कोटेश्वरी महादेव, ढेलाणा-भैरूनाथ, महात्मा भूरीबाई आश्रम इत्यादि प्रसिध्द धार्मिक, प्राकृतिक एवं दर्शनीय स्थल है।
नगर के लोगों का मुख्य रोजगार संगमरमर व रेडीमेड वस्त्र व्यवसाय है।आमेट वर्तमान में खनिज उद्योग का अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त केंद्र है। यहां पर मार्बल व्यवसाय अधिकाधिक विकसित हुआ है। यहां का मार्बल देश-विदेशों में बिकता है। नगर में सभी जातियों एवं सम्प्रदायों के लोग एक साथ मिल-जुलकर रहते है। जैनों की बहुतायत है। यह कुभ्मलगढ़-विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा नगर है। यहां पर तहसील मुख्यालय, नगरपालिका, पुलिसथाना, पंचायत समिती, राजकीय महाविद्यालय, रेफरल चिकित्सालय, रेलवे स्टेशन, उच्च-माध्यमिक विध्यालय, दो सीनियर हायर सैकन्डरी स्कूल, आठ उच्च प्राथमिक एवं प्राथमिक सहित अनेक गैर सरकारी शिक्षण संस्थाएं हैं।
यहां पर धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं के भवन भी है। जिनमें तेरापंथ भवन, जैन श्रावक संघ स्थानकवासी महावीर भवन, आमेट गृह निर्माण सहकारी समिति का सहकार भवन, श्री राम धर्मशाला, जयसिंह श्याम गौशाला प्रमुख है। अलग-अलग जाति एवं धार्मिक विभिन्नता होते हुए भी लोगों में एकता एवं प्रेम सौहार्दपूर्ण भाईचारा व्याप्त है। राष्ट्र संत आचार्य तुलसी के आमेट अमृत महोत्सव के पावन प्रवास में 9 जुलाई 1995 को आचार्य प्रवर ने संत हरचन्द सिंह लोगोंवाल व बरनाला को पंजाब की विकट समस्या समाधान हेतू सतपरामर्श दिया जिसकी परिणति दिल्ली में राजीव लोगों वाल पंजाब शान्ति समझौते के रूप में हुई। इसकी पूर्व की विचार-मन्त्रणा इसी पुण्य धरा पर समायोजित हुई है। राष्ट्र संत आचार्य तुलसी, संत श्री आसारामजी बापू, जगत गुरू शंकराचार्य आदि संतों की चरणरज से यह धरा कई बार पवित्र हुई है। 21 वीं शताब्दी की ऐतिहासिक अहिंसा यात्रा के प्रवर्तक आचार्य महाप्रज्ञजी अहिंसा यात्रा के रूप में अपने सहवर्ती सैकड़ों श्वेत वस्त्रधारी साधु प्रदान कर अहिंसा एवं आध्यात्मिकता की दिव्य चेतना प्रवाहित कर कण-कण में नैतिक एवं चारित्रिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया। आध्यात्मिकता एवं सामाजिकता का पुंज प्रतिक, शैक्षणिक साहित्यिक का उन्नयन क्षेत्र, कौमी एकता मिसाल स्वरूप, वीर प्रसविनी पुण्यधरा, मातृभूमि आमेट को नतमस्तक हम सभी सहस्त्रों वन्दना करते हैं।