नाथद्वारा भारत के राजस्थान राज्य के पश्चिमी राज्य का एक शहर है। यह अरावली पहाड़ियों में, राजसमंद जिले में बनास नदी के तट पर, उदयपुर से 48 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह शहर कृष्ण के अपने मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें 14 वीं शताब्दी के श्रीनाथजी के देवता, कृष्ण के 7 वर्षीय "शिशु" अवतार हैं। देवता को मूल रूप से मथुरा में पूजा जाता था और लगभग छह महीने तक आगरा में रहने के बाद पवित्र यमुना नदी के साथ मथुरा के पास गोवर्धन पहाड़ी से 1672 में स्थानांतरित कर दिया गया था। सचमुच, नाथद्वारा का अर्थ है 'श्रीनाथजी (भगवान) का प्रवेश द्वार'। नाथद्वारा पुष्टि मार्ग या वल्लभ संप्रदाय या वल्लभ आचार्य द्वारा स्थापित शुद्ध अद्वैत से संबंधित एक महत्वपूर्ण वैष्णव मंदिर है, जो मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान के लोगों द्वारा प्रतिष्ठित है, । विट्ठल नाथजी, वल्लभाचार्य के पुत्र ने नाथद्वारा में श्रीनाथजी की पूजा को संस्थागत रूप दिया।
City Profile
महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी के परम आराध्य बृज जनों के प्रिय श्रीनाथजी के विग्रह की सुरक्षा करना उनके वंशज गोस्वामी बालकों का प्रथम कर्तव्य था। इस दृष्टि से श्री विट्ठलनाथजी के पौत्र श्री दामोदर जी स्वयं अपरे काका गोविन्दजी,बालकृष्णजी एवं श्री वल्लभजी ने श्रीनाथजी के विग्रह को प्रभु आज्ञा से बृज छोड देना उचित समझा ओैर समस्त धन इत्यादि को वहीं छोडकर एक माह तक अपने प्रिय श्रीनाथजी को लेकर वि.स. 1726 आसविन शुक्ला 15 शुक्रवार को रात्री के पिछले प्रहर रथ में पधारकर बृज से प्रस्थान किया। अन्त में मेवाड राज्य के सिंहाड नामक स्थान पहुंचकर स्थायी रूप से विराजमान हुए। उस काल में मेवाड के राजा राजसिंह सर्वाधिक शक्तिशाली हिन्दु नरेश थे। इन्होंने ओरंगजेब की उपेक्षा कर पुष्टि सम्प्रदाय के गोस्वामियों को आश्रय और संरक्षण प्रदान किया। संवत 1728 कार्तिक माह में श्रीनाथजी सिंहाड पहुंचे वहां मन्दिर बन जाने पर फाल्गुन कृष्ण सप्तमी शनिवार को उनका पाटोत्सव किया गया। श्रीनाथजी के कारण मेवाड को वह अप्रसिद्ध ग्राम सिंहाड अब भी श्री नाथद्वारा नाम से भारत में ही नहीं विश्व में सुविख्यात है। सेवा भावना के विशेष रूप को प्राणान्वित किया। उन्होंने अपने अष्ट छाप के भक्त को अष्टयाम दर्शनों के लिये कीर्तन की सेवा प्रदान की। श्री गुंसाईजी के जीवन काल में श्रीनाथजी के अष्टयाम सेवा भावना का क्रम उत्तरोत्तर बढता ही गया। तदनुसार छः वर्ष घसियार वास करने के बाद वि.सं. 1864 में भगवान श्रीनाथजी अपने दसबल सहित अनेक भक्तों के साथ युद्ध भूमि हल्दीघाटी के बिहड रास्ते से खमनोर होते हुए पुनः नाथद्वारा पधारे। तब से घसियार में आज भी चित्र जी की सेवा होती है। मनोरथ उत्सव होते हैं। नाथद्वारा मन्दिर की वहां प्रतिकृति है। तत्कालीन समय में यह क्षेत्र मेवाड रियासत के अन्तर्गत था। मेवाड के शासक महाराणा राजसिंह(उदयपुर) ने श्रीनाथजी की सुरक्षा के लिये चार दीवारी के साथ सैनिक तैनात किये। सुरक्षा के कठोर सुप्रबंध के कारण यह नगरी कालान्तर में विकसित होती रही। नाथद्वारा नगर भारत के प्रमुख वैष्णव केन्द्रों में से एक है,इसमें प्रमुख मन्दिर भगवान श्री कृष्ण का है। जो श्रीनाथजी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर वर्ष भर देश व विदेशो से श्रद्धालु दर्शनों के लिये आते हैं। भारत वर्ष में मेवाड तीर्थी स्थलों के साथ ऐतिहासिक शैर्य की गाथाओं से भरा पडा है। अरावली की सुरम्य घाटीयों की परिधि से लगी राजस्थान की धर्मावली राणा प्रताप की रण स्थली हल्दीघाटी नाथद्वारा से 16 किमी दूर है।
नाथद्वारा एक तरफ बनास नदी तथा एक ओर पहाडी से घिरा हुआ है। यह ऊँची ऊँची पथरीली भूमि पर बसा हुआ है। कुंभलगढ की पर्वत श्रेणियों से निकली चम्बल की सहायक नदी बनास नाथद्वारा के समीप अर्द्ध चन्द्राकार रूप में घूमती है। नदी के सहारे समतल भूमि होने से यहां पर खेती की पैदावार की जाती है। खेती में रबी,खरीफ व जायद की फसलें तैयार की जाती है। इनमें मुख्यतः जौ,चना,गेहूं,सरसों,ज्वार,मक्का, बाजरा,तिल,उडद,मंगफली,कपास,गन्ना व तरबूज व ककडी आदि की पैदावार की जाती है। इनके अलावा सब्जियां भी तैयार की जाती है। यहां की मिट्टी काली चिकनी होने से फसल के लिये उपजाउ है। कस्बे के आसपास अधिकतर पथरीली मिटटी है। नाथद्वारा से 12 किमी दूर पश्चिम में बनास नदी पर नन्दसमंद बांध है। जिससे कृषि की पैदावार में काफी बढोतरी हुई है। यहां की जलवायु समशीतोष्ण होने के कारण स्वास्थ्य वर्द्धक है। गर्मियों में यहां का अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस व सर्दियों में न्यूनतम तापमान 1.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। पहाडी क्षेत्र होने के कारण यहाँ गर्मी के मौसम में काफी गर्मी रहती है। तथा इस मौसम में चलने वाली शुष्क हवाओ की वजह से मौसम असहनीय हो जाता है। यह शुष्क तापक्रम कभी-कभी 45 डिग्री से भी उपर पहुंच जाता है। इस अवधि में आद्रता 20 प्रतिशत या इससे कम होती है। जून के अन्तिम सप्ताह में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के कारण इस क्षेत्र में वर्षा होती है। इस कारण से तापमान में गिरावट का दौर शुरू हो जाता है। मानसून अवधि में हवा में आर्द्रता 70 प्रतिशत या अधिक रहती है शेष अवधि में हवा सामान्यतः शुष्क रहती है। ग्रीष्म ऋतु में हवायें दक्षिण-पश्चिम में उत्तर-पूर्व की ओर चलती हैं। कस्बे की औसत वार्षिक वर्षा 652.5 मिलीमीटर हेाती है। वर्षा का दौर प्रायः जून से सितम्बर के मध्य में रहता है।
नाथद्वारा राजस्थान के राजसमंद जिले का प्रमुख तीर्थ स्थान है तथा वल्लभ सम्प्रदाय की यह एक सुप्रतिष्ठित पीठ है। नाथद्वारा नगर सभागीय मुख्यालय उदयपुर से 48 किमी उत्तर में जिला मुख्यालय राजसमंद से 15 किमी दक्षिण में राज्य की राजधानी जयपुर से 376 किमी व राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 597 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-8 राज्य राजमार्ग व 49 के संगम पर स्थित है। नाथद्वारा को वर्ष 1901 के पूर्व से ही नगर का दर्जा प्राप्त था। वर्ष 1901 में नगर की जनसंख्या 8591 थी। कस्बे की जनसंख्या में उतार चढाव का दौर रहा। कस्बे में सर्वाधिक वृ़िद्ध दर 36.02 प्रतिषत वर्ष 1971 में दर्ज की गई जो कि एक रिकॉर्ड है। इस दशक में ग्रामीण जनता का रूझान शहरों/कस्बों की ओर पलायन का रहा है। वर्ष 1941 से 2011 तक पिछले 7 दशकों का अवलोकन करें तो वर्ष 2011 तक मात्र 4 गुणा वृद्धि के साथ जनसंख्या 42016 व्यक्ति हो पाई। नगर का क्षैत्रफल 18.16 किमी है इसलिये नगर का जनसंख्या घनत्व 2322 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी है।