History/City Profile
INTRODUCTION (ULB INTRODUCTION)
झालरापाटन एक प्राचीन एवं पौराणिक नगरीय है। यह भारत की प्राचीनतम जगह मे से एक है। यह लगभग 190 वर्ष पुरानी नगरपालिका है। झालावाड़ नरेश के द्वारा इसकी स्थापना की गई। यह राष्ट्रीय राजमार्ग नं0 12 पर स्थित है। वर्तमान में 25 वार्ड है। शहर के मध्य स्वयं के मालिकाना भवन में कार्यालय संचालित है।
History/City profile (ULB/City/Town History details)-
झालरापाटन का नाम राजा झाला जालिम सिंह व इस शहर के 108 मंदिरो की झालरो की झंकार से उत्पन्न ध्वनि के नाम पर रखा गया। सन् 1892 ई. में नगरपालिका की स्थापना की गई। हैं। कर्नल टॉड ने History of Rajputana में इसका विषद वर्णन किया है। पूर्व में यह शहर परकोटे में सिमित था किन्तु बाद में बाहर भी इसका विस्तार हुआ। दर्शनीय स्थलो में द्वारकाधीश मंदिर, चन्द्रभागा नदी व शीतलेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव, सूर्य मंदिर तथा शांतिनाथ मंदिर एवं गौमती सागर है। वर्तमान में यहाॅ हर्बल गार्डन, आनन्दधाम, साईन्स पार्क, वाकिंग ट्रेक, जूनि नसिया आदि भी विकसित किये गये है।
चन्द्रभागा नदी:- हाड़ोती की गंगा ‘चन्द्रावती‘ (चन्द्रभागा) नदी के तट पर झालरापाटन शहर बसा हुआ हैं। कार्तिक पूर्णिमा, सोमेती अमावस्या तथा बैसाखी पर असंख्य श्रृद्धालु इस नदी में स्नान करने आते है। शीतलेश्वर मंदिर इसी के तट पर स्थित है। अर्द्धनारीश्वर को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था। अन्य मंदिरो में भूतेश्वर महादेव मंदिर, शंकुधार तथा भगवती मंदिर खास है।
सूर्य मंदिर:- झालरापाटन में स्थित 1400 साल पूराना यह बेजोड़ मंदिर शिल्प कला का धनी है। इसके खण्ड़पाट पर सूर्य की पहली किरण गिरती है। तब यह मंदिर फूलो के गुलदस्तो की आभा देने लगता है। 90 फीट लम्बे शिखर वाले सूर्य मंदिर को महाभारत कालीन भी मानते है।
शान्तिनाथ मंदिर:- इस मंदिर का निर्माण लगभग 1100 वर्ष पूराने पाडाशाह नामक जैन ने तत्कालीन चाॅदी के 4 लाख रूपये की लागत से करवाया था। इस मंदिर का शिखर 87 फीट ऊॅचा है। गर्भगृह में भगवान शान्तिनाथ की 12) फीट लम्बी प्रतिमा है। चीनी मिट्टी से बने दो विशाल हाथी ऊॅची सून्ड उठाये हर समय वन्दना करते प्रतीत होते है और मंदिर की शोभा बढाते है।
द्वारिकाधीश मंदिर:- यह मंदिर राज मंदिर है। द्वारकाधीश विग्रह की प्रतिमा यहां स्थापित है। इस मंदिर की विशेषता अन्नकूट, गोरधन पूजा, होली तथा जन्माष्टमी पर्व है। सामाजिक कुरितियों में इस मंदिर ने अहम भूमिका निभाई है।
अन्य धार्मिक स्थल:- विभिन्न जातियो कें निजी मंदिर के अतिरिक्त श्री रंगजी का मंदिर (नारायण मंदिर) नवग्रह मंदिर, दिगम्बर जैन नसिया तथा 1982 में दाउदी बोहरा समाज द्वारा बनाई गई सैफी मस्जिद अन्य धार्मिक स्थलो में प्रमुख है। वर्तमान मे एक गुरूद्वारा तथा पशुपतिनाथ मंदिर भी निर्माणाधीन है।
नवलखा किला:- नौ लाख चाॅदी के रूपयो से निर्मित यह किला इस शहर की अस्मिता है। किलो की प्रासंगिकता समाप्त हो जाने पर अधुरे रह गये इस किले को राजस्थान का आखरी किला माना जाता है।
मदनविलास महल:- गोमती सागर तालाब की पाल पर बने इस सुन्दर महल में अब जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान चल रहा है। फिल्मो तथा धारावाहिको की शूटिंग भी इस महल मे होती रहती है। अन्य शिक्षण संस्थानो में हाई स्कूल एवं गल्र्स हाई स्कूल है। यहाॅ कृषि महाविद्यालय की आवश्यकता एक अर्से से महसूस की जाती रही है।
तालाब:- जल संसाधन के अक्षय स्त्रोत के रूप में यहाॅ दो तालाब भी है। कृष्णासागर (चामडि़या) तथा गोमती सागर। सुन्दर घाटो वाले यह तालाब दैनिक आवश्यकता आपूर्ति के साथ - साथ सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध करवाते है।
मेलें:- चंद्रभागा नदी के तट पर कार्तिक तथा बैसाख पूर्णिमा को विशाल धार्मिक मेलें लगते है। जिनमें उत्तम किस्म के मालवीय मवेशियो की खरीद के लिए सम्पूर्ण भारत से व्यवसायी भी आते है। इनके अतिरिक्त दशहरा, मकर सक्रांती, रथयात्रा, उर्स तथा गणगौर पर भी लघु मेले लगते है।
नगरपालिका:- झालरापाटन को भारत भर में सर्वप्रथम निर्वाचित नगरपालिका द्वारा शामिल होने का गौरव प्राप्त है। प्रख्यात इतिहासविद् कर्नल जेम्स टाड के अनुसार मैने अपनी 1821 की भारत यात्रा में सिर्फ झालरापाटन में ही म्यूंनिसपल कौन्सिल का शासन देखा अर्थात यहां की नगरपालिका 176 वर्ष पुरानी तो है ही इसके पहले भी थी।
न्याय व्यवस्था:- चैपडिया बाजार में स्थित गोपाीनाथ मंदिर से पहले जातीय अदालत था जहां नगरसेठ जी विभिन्न जातियों के पेचिदा मसलों का निराकरण करते थे।
साहित्य एवं मानव शक्ति:- अपने सांप्रदायिक सदभाव के लिये विख्यात हाडौती की सांस्कृतिक राजधानी झालरापाटन को कई विद्वानों व उधोगपतियों की जन्मस्थली होने का गौरव भी हासिल है। नवरत्न ने दूसरे दशक में राजपूताना हिन्दी साहित्य सभा की स्थापना की जिसके द्वारा सरसवती चन्द्र, जया जयन्त तथा प्रगति कवियत्री है। जैन समाज की दुर्लभ पुस्तको संग्रहण सरस्वती भवन जैन पुस्तकालय में हैं, जो भारत भर मे अद्वितीय है। उधोगपति विनोदीराम बालचंद, ई.एस. पाटनवाला, सेठ कल्याणमल जी तथा पूर्व गृहमंत्री प्रकाशचंद सेठी की जन्मस्थली भी यह शहर ही है। इसकी तत्कालीन समृद्धता का अहसास शांतिनाथ मार्ग पर स्थित विशाल हवेलियों को देखकर होता है।
उपज एवं उधोग:- वर्तमान में कोटा स्टोन की कटीेंग तथा पोलिशिंग का उद्योग भी फल फूल रहा हैं। प्रस्तावित ग्रोथ सेन्टर का विकास हो जाने पर अन्य उद्योगों के विकास की भी आशा हैं।
पनचक्की:- आहु, कालीसिंध, चन्द्रभागा नदी तथा अरावली पर्वत श्रेणी से घिरे प्राकृतिक सौन्दर्य से युक्त यह सुन्दर शहर जिसे राजस्थान का पेरिस कहा जाता हैं।
व्यवस्थापन/संगठन:- झालरापाटन शहर व्यापार और व्यवसाय के बीज मे मौजूद हैं, की स्थापना ही व्यापार के लिए हुई थी। झालावाड में राजे, रजवाडे बसते थे और पाटन में व्यापारी। यहां के व्यापार ने तो उत्तरौत्तर प्रगति ही की है। आज भी कोटा स्टोन व मण्डी जिन्स का व्यापार दूर दूर तक होता है। महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र में सन् 1980 तक व्यापारियो का संगठन या मंच नही था और व्यापारियों की सांगठनिक एकता के अभाव मंे कई परेशानियों का सामना करना पडता था। व्यापारियो के प्रयासो से व्यापार संघ का गठन किया गया। सामाजिक क्षैत्र में नेत्र शिविरो का आयोजन, पवित्र व ऐतिहासिक चन्द्रभागा नदी की सफाई, झालावाड़-झालरापाटन नगर परिषद की खिलाफत के मुद्दे पर यानी हर जगह व्यापार संघ ने अपने दायित्वो को निभाया हैं और आगे भी निभाता रहेगा।